के बारे में
अहिल्याबाई घाट, वाराणसी का महत्व इस कारण विशेष है कि यह शहर का पहला घाट था जिसे किसी व्यक्ति—इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर—के नाम पर रखा गया। होल्कर वंश की शासक (1725–1795) रानी अहिल्याबाई भारतीय इतिहास की सबसे योग्य और धर्मनिष्ठ शासिकाओं में मानी जाती हैं। उन्होंने काशी विश्वनाथ, सोमनाथ और रामेश्वरम जैसे पवित्र मंदिरों का पुनरुद्धार किया। उनके सभी कार्य पहचान पाने के लिए नहीं, बल्कि गहरी आस्था और श्रद्धा से प्रेरित थे।
मध्यप्रदेश में जन्मी अहिल्याबाई का विवाह खंडेराव होल्कर से हुआ था। उनके असमय निधन के बाद अहिल्याबाई ने शासन संभाला। उनके शासनकाल की पहचान सुशासन, धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक कल्याण, बुनियादी ढाँचे के विकास और कला-संस्कृति के संरक्षण से होती है। वे एक आस्थावान हिंदू थीं, किंतु सभी धर्मों और पंथों को समान संरक्षण देती थीं।
सन 1785 में उन्होंने वाराणसी में इस घाट का निर्माण कराया। इसका प्राचीन नाम केवल गिरी घाट था। यहाँ एक भव्य महल, विशाल मठ, गौशाला और हनुमान मंदिर भी उनकी देखरेख में बने। घाट की सीढ़ियाँ, आंगन और मंदिर उस युग की स्थापत्य कला और होल्कर वंश की सुरुचिपूर्ण शैली को दर्शाते हैं।
अहिल्याबाई ने यह साबित किया कि महिलाएँ भी सक्षम शासक बन सकती हैं। उनका जीवन सेवा, श्रद्धा और प्रजा-कल्याण के आदर्शों से भरा था। आज अहिल्याबाई घाट केवल स्थापत्य की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि एक प्रेरणा के प्रतीक के रूप में भी खड़ा है—जो हमें याद दिलाता है कि श्रद्धा और दूरदर्शिता से किया गया कार्य पीढ़ियों तक अमर रहता है।