दिग्पतिया घाट के बारे में
दिग्पतिया घाट वाराणसी का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण घाट है। इसका निर्माण लगभग 1830 ईस्वी में दिग्पतिया के राजा ने कराया था। यहाँ स्थित महल अपनी बंगाली वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें राजपूत और बंगाली शैली का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है।
यह घाट सत्ता या वैभव का प्रतीक नहीं था, बल्कि तीर्थ, साधना और आध्यात्मिक जुड़ाव का केंद्र माना जाता था। यहाँ विद्वान और साधक एकांत में बैठकर वैदिक अध्ययन और चिंतन किया करते थे।
किंवदंती है कि राष्ट्रीय चिंतक भूदेव मुखोपाध्याय ने भी यहाँ आकर शांति और सुकून का अनुभव किया था। आज भी दिग्पतिया घाट वाराणसी में शांति, स्थिरता और आत्मचिंतन का स्थान माना जाता है।